Monday, September 24, 2012

जलजला (क) वन्दना (१) ईश-वन्दना हे प्रभु उतरो इस धरती पर !!

(सारे चित्र गूगल से साभार )


  
श-वन्दना 
  
                          
    हे प्रभु उतरो इस धरती पर !!

                        
 |||||||||*******************|||||||| 
     !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
  ' स्वतंत्रता ' का धीरज टूटा |
  हे प्रभु उतरो इस धरती पर !!


|||||||||*******************|||||||| 
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! 


'कलि'ने अपना 'बिगुल' बजाया |
'पुण्य-दलन अभियान ' चलाया ||




चली 'वासना' अपनी बाहें, 
'तृष्णा' की बाहों में डाले |
तुम्हें छोड़ कर कौन जगत में, 
जो इन सब से सृष्टि बचा ले !! 
       
'राजनीति'बन ठन कर निकली |
'खेल' खेल कर स्वाँग सा झूठा-
ठठ्ठा मार रही है जी भर
हे प्रभु उतरो इस धरती पर !!१!!




हैं 'विनाश' ने नयना खोले
'धर्म-रत्न 'सब छिपे टटोले ||

लगता इन्हें लूटने आया,
'दुराग्रह' को साथ में लाकर |
'मानवता की रत्न-पिटारी',
 पटकी,खोली, और हिलाकर ||

चुरा लिए हैं  'शील के मोती '|
किया है अपहृत 'प्रेम अनूठा '|
'विश्वासों की माला' ली हर |
हे प्रभु उतरो इस धरती पर !!२!!

 नाच रही है अट्टहास कर |
 चहुँ तरफा मैली कुवास भर ||

धसक धसक कर धरा डोलती,
लगता कोइ ज़लज़ला आया |
'सज्जनता' को पीड़ा पहुँची,
नयनों नीर छलकता आया ||

'हिंसा','छलना',सहेलियाँ दो,
'मर्यादा' को दिखा अंगूठा |
निकली हैं, लगता मद पी कर |
हे प्रभु उतरो इस धरती पर !!३!!



चला  'स्वेच्छाचार'  रौंदने |
'मानवता'  की जड़ें खोदने ||

'करुणा ',' दया ''ममता ' भागीं,
छुपने अपनी 'लाज 'बचाने |
संयम,नियम के बन्धन तोड़े,
'मनमानी ' का नाच नचाने ||

ज्यों हिंसक मरखने बैल ने
तोड़ दिया हो अपना खूटा |   
कुचल रहा हो,सबको जी भर |
हे प्रभु उतरो इस धरती पर !!४!!




====================================================================    

No comments:

Post a Comment