जाजला (मुक्तक काव्य) में
उससे हट कर एक अलग हट कर विशेष प्रस्तुति है !
जग
में आये बापू जी |
‘प्रलय-कल’
के सदृश पाप जब, बढे हुये थे धरती पर |
तब थे तुम
‘अवतार’सरीखे,जग में आये बापू जी |
‘ज्ञान-हीनता
की अँधियारी’छायी थी जब धरती पर –
‘जगमग जगमग,जलता ज्योतित दीपक’,लाये
बापू जी ||
बिखर चलीं ‘संसृति की लड़ियाँ’,’मन
के मोती’टूट गये |
‘मानवता की देवी’ रूठी, ‘सद्गुण
सारे’ ;रूठ गये ||
‘निर्दयता’,’हिन्सा’, ‘पीड़ा की
अग्नि’ जली थी प्रचण्ड हा !
‘दया’,’अहिंसा’,
‘करुना’ के घन’ साथ में लाये बापू जी |
जग में आये बापू जी ||१||
‘अकर्मण्यता’
के हाथों में,कठपुतली सा नाच रहा |
‘महानाश’
का ‘ग्रन्थ’,‘पाप के अक्षर’ से था बांच रहा ||
‘काल-चक्र’
की गति में बेबस, फँसा हुआ था जब भारत |
‘श्रमाक्षरों’
से ‘पुण्य-वेद’ तब रचाने आये बापू जी ||
जग में आये बापू जी ||२||
‘अपनी माँ’ को ‘माँ’ न् कहेगा, ऐसा था
प्रतिबन्ध यहाँ |
‘तानाशाही के पिंजरे’ में ‘राष्ट्र-प्रेम’
था बन्द यहाँ ||
‘मात्री-भावना’,’बन्धु-भावना’ सब ‘कारा,
में बन्द हुये |
हमें
बचाने, ‘अपनी आहुति’ देने आये बापू जी ||
जग में आये बापू जी ||३||
वे गोरे थे नहीं, ’खटमलों का समूह’ था ‘प्यास लिये |
या ‘जोंकों का यूथ’, बस गया, ‘रक्त-पिपासा’ साथ लिये ||
‘श्री’,’वैभव’,’यश’ नहीं,’रक्त’ ही चूस रहा वह भारत का |
‘सात्याग्रह’
नहिं, ‘मत्कुण-नाशक औषधि’ लाये बापू जी ||
जग में आये बापू जी ||४||
‘प्रलय-कल’
के सदृश पाप जब, बढे हुये थे धरती पर |
तब थे तुम
‘अवतार’सरीखे,जग में आये बापू जी |