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(दिल्ली-‘यौन-हिंसा’-दिसम्बर-२०१२ पर विशेष)
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‘धरती’ हिलने लगी है, टूटी
‘सन्तुलन-कीली’ |
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आपस में करते हैं दंगे |
उड़ा रहे हैं इन्हें ‘लफंगे’ ||
‘दाँव-पेंच’ कितने ‘शैतानी’ !
अनियंत्रित हो गयीं ‘पतंगें ||
‘अनुशासन की डोरी हो गयी-है कितनी ढीली ||
‘धरती’ हिलने लगी है, टूटी ‘सन्तुलन-कीली’ ||१||
‘तोड़-फोड़’ औ
‘आगजनी’ से |
जले जा रहे
सभी ‘दरीचे’ ||
‘प्रेम’ के
हरे भरे थे सुन्दर-
‘पुरखों ने
‘मेहनत’ से सींचे ||
‘भारत माँ की गर्दन’ झुक गयी, हो
कर ‘शर्मीली’ ||
‘धरती’ हिलने लगी है, टूटी
‘सन्तुलन-कीली’ ||२||
आज मचलने लगी है देखो !
‘आग’ उगलने लगी है देखो !!
पाकर ‘रगड़’ तोड़ दी ‘चुप्पी’-
‘धूधू’ जलने लगी है देखो !!
करवट बदल के ‘बागी’ हो गयी,
‘माचिश’ की तीली ||
‘धरती’ हिलने लगी है, टूटी
‘सन्तुलन-कीली’ ||३||
‘”प्रसून” जल गये, ’कलियाँ’ झुलसीं |
‘सारी बगिया’
हुई विकल सी ||
‘हिंसा’
‘शान्ति-वन्’ में पनपी-
कितनी भीषण
‘दावानल’ सी ||
‘अमन की देवी’ कितना रोई, ‘आँखें’
हैं गीली ||
‘धरती’ हिलने लगी है, टूटी
‘सन्तुलन-कीली’ ||४||
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सुंदर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteमानव जनित विप्लव का सुन्दर चित्र उकेरा है आपने। बड़ा दिन ईसा का अवतरण दिवस मुबारक।
ReplyDeleteएक साल गुजर गए
ReplyDeleteपता नहीं अभी और
कितने समय इन्तजार करना होगा
बहुत दिनों के बाद आपके पोस्ट पर आया हूं। प्रस्तुति काफी अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट "समय की भी उम्र होती है",पर आपका इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना है।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना है।
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